________________ ( 207 ) संसार में ही रह जाता है / फिर उस की ली हुई कठिनसे कटिन वाधाएँ भी धीरे धीरे नष्ट प्रायः हो जाती है। इसी लिए शास्त्रकारोंने विराग पदवी प्राप्त करने में विलंब नहीं करने की सूचना दी है / सांसारिक ऐसे मनुष्यों के संबंध में, जो अनुकूल उपसर्गौसे पराभूत हो कर धर्म छोड़ देते हैं-कहा गया अन्ने अन्नेहिं मुच्छिया मोहं जंति नरा असुंबडा / विसमं विसमेहिं गाहिया ते पावेहिं पुणो पगब्भिया॥२०॥ भावार्थ-अल्प पराक्रपवाले जीव माता पितादिसे और परिवारसे उपद्रवित हो कर मोह मे पड़ जाते हैं। और समस्त प्रकार की मर्यादा छोड कर गृहवास को स्वीकार कर लेते है। गृहवास में जा कर क्रूर कृतियों द्वारा विषम कर्मों का बंध करते हैं। अर्थात् फिरसे जो अवस्था होती है उस के अंदर वे पूर्वावस्थासे भी विशेष भीरु बन जाते हैं। ____ यह बात तो प्रसिद्ध है कि, ऊँची भूमि पर चढ़ा हुआ मनुष्य जब गिरता है तब उस के विशेष रूपसे चोट लगती है / इसी तरह जो ग्यारवें गुणस्थान में चढ़ कर गिरता है वह पहिले मिथ्यात्व गुणस्थान में आ कर ठहरता है / संयमसे गिरा हुआ जीव प्रायः श्रावकों के व्रतसे भी पतित हो जाता है / इसी लिए सूत्रकार अपने धर्म में स्थिर रहने के लिए इस प्रकार उपदेश