________________ ( 212) 'यः क्रियावान् स च पण्डितः।' (जो क्रियावान् होता है वही वास्तविक पण्डित होता है।) अन्य तो केवल नाम ही के पंडित होते हैं। इसी बात को उपदेश शतक के कर्ता इस तरह कहते हैं:विद्वांसो न परोपदेशकुशलास्ते युक्तिभाषाविदो, नो कुर्वन्ति हितं निजस्य किमपि प्राप्ताः पराभ्यर्थनाम् / तस्मात् केवलमात्मनः किल कृतेऽनुष्ठानमादीयते, मत्ययः मुकृतकलाभनिपुणैस्तेभ्यो नमः सर्वदा // भावार्थ-जो केवल दूसरों को उपदेश देनेही में कुशल होते हैं उन्हें विद्वान् नहीं समझना चाहिए। वे तो केवल युक्ति और भाषा के जानकार मात्र हैं / जो अपना कुछ भी आत्महित नहीं करते हैं वे दूसरों की अभ्यर्थना पाते हैं यानी दूसरों के किंकर बनते हैं इसलिये सुकृत के असाधारण लाम में जो चतुरपुरुष, केवल आत्मकल्याण के लिये शुमानुष्ठान स्वीकारते हैं वे पुरुष सचमुच वंदनीय हैं / शास्त्रकार कहते हैं कि-वैसे पुरुषों को मेरा सर्वदा नमस्कार हो। ___पंडित वही गिना जाता है जो क्रियावान होता है। केवल पुस्तक पढ़कर कुतर्क करनेवाला या दूसरों को उपदेश देकर आप उसके अनुसार नहीं चलनेवाला पंडित नहीं होता है। शतककार और भी कहते हैं कि:----