________________ ( 244 ) करे / अपना एक रोम भी न फरकने दे / उपसर्गों के समय में जीवन की आशा न रक्खे और न यही सोचे कि, इन उपसर्गों से मैं मर जाऊँगा। इसी तरह उपसर्गों से पूना प्रभावना की भी इच्छा न करे। शून्य घर में होनेवाले, या श्मशानादि में होनेवाले उपसर्गों को मुनि बारबार समता पूर्वक सहन करें। उक्त चार गाथाएँ जिनकल्पी साधुओं के लिए कही गई हैं। जिनकल्प व्यवहार में व्युच्छिन्न-नष्ट हो गया है / बलिष्ट कर्मों को नष्ट करने के लिए, प्रथम संहनन आदि के योगसे, मुनिमतंगन पहिले जिनकल्पी बनते थे / अब तो केवल स्थविरकल्प ही बाकी रह गया है / व्यवहार सूत्र, बृहत्कल्प और प्रवचनसारोद्धार के अंदर जिनकल्पका विशेष विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। साधुओं को स्त्री, राना आदि से दूर रहना चाहिए / इसके लिए सूत्रकार फर्माते हैं: स्त्री आदि के संसर्ग त्याग / उवणीयतरस्स ताइणो भयमाणस्स विविकमासणं / सामाइयमाहु तस्स जं जो अप्पाण भएण दसए // 17 // उसिणोदगतत्तभोइणो धम्मठियस्स मुणिस्स हीमतो। संसग्गिअप्साहु राईहिं असमाही उ तहागयस्स वि॥१८॥ भावार्थ-जिसने ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अंदर अपने