________________ ( 264 ) अपत्तिअं जेण सिआ आसु कुप्पिज वा परो / सव्वसो तं न भासिज्ज भासं अहिअगामिणिं // 48 // (दशवैकालिक अध्ययन 8 वा) ऊपर इसी गाथा का अर्थ दिया गया है। नीति में भी 'वाग्भूषणं भूषणं ' इत्यादि युक्तियुक्त कथन है / क्लेश करनेवाला और क्लेश कर वचन बोलनेवाला मनुष्य दुसरों के लिए अहितकर होता है / इतनाही नहीं वह आप भी चारित्ररत्न को नष्टकर दुर्गतिगामी बनता है। इसीलिए सूत्रकार कहते हैं कि" पंडित वही होता है जो कलह न करे, न करावे और कलह में अनुमोदना भी न दे। वह केवल साधुपन में रहकर कर्म की निर्जरा करे।" अज्ञानजन्यप्रवृत्ति। णय संखयमाहु जीवियं तह विय बालजणो पगब्भइ / बाले पापेहिं मिज्जति इति संखाय मुणि ण मज्जति // 21 // छंदेण पाले इमा पया बहुमाया मोहेण पाउडा / वियडेण पलिंति माहणे सीउण्ह वयसा हियासए // 2 // भावार्थ-बालजीव जानते हैं कि, टूटे हुए जीवन को साधने का कोई उपाय नहीं है, तो भी बालजीव ढिठाई करके, पापकर्म करते हैं और डूबते हैं। यह जानकर मुनि को कभी