________________ ( 270 ) निवृत्तिस्तु महाफला।' और इस वाक्य का अर्थ ऐसा ही है कि, ' प्रवृत्ति में दोष नहीं है, और निवृत्ति में महाफल है।' तो वह वाक्य तटस्थ मनुष्य के मनोमंदिर में स्थान न पा सकेगा। इस प्रकार का अर्थ कियानाकर, मनुनी का कथन प्रामाणिक माना जाय तो फिर कोई मध्यस्थ पुरुष निम्न लिखित श्लोक कहे तो वे भी प्रामाणिक क्यों न गिने जायँ ? जैसेः क्रोधे लोभे तथा दम्भे चौर्ये दोषो नहि नृणाम् / प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला // 1 // पैशुन्ये परनिन्दायां माने दोषभ्रमोऽपि न / प्रवृत्तिरेषा भूतानां, निवृत्तिस्तु महाफला // 2 // असत्थे दोषप्तत्ता न देवाज्ञाखण्डने तथा / प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला // 3 // कृतघ्नत्वे न वै दोषो निथ्या धर्मोपदेशके / प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला // 4 // शद्रवृत्तौ न वै दोषो म्लेच्छवृत्तौ तथैव च / प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला // 5 // विप्रघाते च नो दोषो गोवधे नृवधे तथा / प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला // 6 // शंकरोस्थापने दोषो नहि पितृवधे तथा / प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला // 7 //