________________ ( 272 ) श्रद्धा को आगे करके यदि कोई हिंसादि दुष्कृत्य करे तो उसके भाग्य की बात है। इसीलिए श्रीवीतराग प्रमुने साधुओं को दृष्टान्त सहित विशुद्धमार्ग को ग्रहण करने का उपदेश दिया है। p ===== === =00 विशुद्धमार्ग सेवन / विषय त्याग। उत्तरमणुयाण आहिया गामधम्मा इह मे अणुस्सुयं / जसि विरता समुट्ठिया कासवस्स अणुधम्मचारिणो // 25 // जे एयं चरंति आहियं नाएणं महया महेसिणा / ते उठ्ठिय ते समुट्ठिया अन्नोन्नं सारंति धम्मओ // 26 // ____ भावार्थ-सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी से कहते हैं कि हे जंवू ! पहिले ऋषभदेव भगवानने जो बात अपने पुत्रों को कही थी / वही बात श्रीमहावीरस्वामीने मुझ से कही / अब वह बात मैं तुझे कहता हूँ / वह यह है,-इन्द्रिय विषय मनुष्यों के लिए दुर्जय हैं। शब्दादि के 23 विभाग किये गये हैं। जो व्यक्ति उन विषयों से विरक्त हो उसी को निनोक्त धर्म का पालनेवाला समझना चाहिए / जो पूर्वोक्त ग्राम धर्मों को ज्ञानपूर्वक छोड़ते हैं वही काश्यप धर्म की सेवा करते हैं। यानी उनको