________________ (262) डरता है / अर्थात् जो कार्य कर्मबंध के कारण होते हैं उनको वे नहीं करते हैं / वे गृहस्थ के बर्तनों में भोजन भी नहीं फरते हैं। जिन्होंने आधि, व्याधि और उपाधि का त्याग कर दिया है; और जो मात्र आत्मश्रेय के लिए ही वैराग्यवृत्ति में प्रवृत्ति करते हैं, उनके लिए क्लेश होने का कोई कारण नहीं है / इतना होने पर भी यदि वे क्लेश करें या करावे तो उनको महान मोह का उदय समझना चाहिए। इसीलिए तो शास्त्रकारोंने कहा है कि, जो क्रोध करता है, वह अपने पूर्वकोटि बरस तक पाले हुए संयम का नाश करना है। सजन पुरुष कभी अपने मुखकमल से कटोर वचन नहीं निकालते हैं। अगर उनके मुँहसे कठोर वचन निकलने लग जाय तो उनके मुँह को मुखकमल न समझकर मुखदावानल समझना चाहिए / कठोर वचन सामनेवाले मनुष्य के हृदयकमल को जलाकर उस को मृत्यु के मुख में डालते हैं। शस्त्रों के घाव समजाते हैं, मार्मिक वचन घाव कभी नहीं समते / जब सज्जनों की पंक्ति में रहे हुए मनुष्यों के लिए भी कठोर वचन का बोलना अनुचित है, तब साधुओं के लिए तो कठोर वचन बोलना ठीक होही कैसे सकता है ? साधुओं को बहुत विचार के साथ वचन वर्गणा निकालनी चाहिए। साधुओं को ऐसे वचन बोलने चाहिए कि जो कषाय कलुषित मनुष्यों को शान्ति देने में चंदन के समान हों; जो क्रोध रूपी