________________ ( 263 ) अग्नि को शान्त करने में जल के समान हों, जो संमोह रूपी धूल को उड़ाने में वायु के समान हों और जो मोह महामल्ल को नाश करने में शस्त्र के समान हों। हाँ, साधु ' महानुभाव / 'देवानुप्रिया 'हे भद्र'' हे धर्मशील , आदि जो वचन उचारते हैं वे असत् रूप न होकर परमार्थ होने चाहिए / थोड़ी गंभीरता से विचार किया जाय तो, मालूम होजाय कि 'मुनि' शब्द का अर्थ ही मौन की सूचना करता है / अर्थात् मुनि विना प्रयोजन न बोलें और अगर बोलें तो, हित, मित और तथ्य इन विशेषणों से विशिष्ट वचन बोले / पनवणा सूत्र में भाषापद के अंदर भाषा बोलनेवाले के लिए सूक्ष्मता से विचार कियागया है। मणक नामा एक मुनि के लिए शय्यंभवसरिने सिद्धान्तो में से सार खींचकर, दशवकालिक सूत्र में भाषा के संबंध में जो सातवा अध्ययन दिया है, उस में स्पष्ट लिखा है कि:___“चोर को चोर और काने को काना भी नहीं कहना चाहिए। क्योंकि उनसे सुननेवाले को दुःख होता है इसलिए वह मृषावाद रूप हैं।" तत्पश्चात् इसी सूत्र के आचारप्रणिधि नामा माठवें अध्ययन में लिखा है कि-" जिस वचन से सामनेवाले को अप्रसन्नता हो यानी जिस वचन से सुननेवाले को क्रोध आ. जाय, साधु ऐसा अहितकर वचन न बोले।"