________________ ( 249) कथन उपेक्षा योग्य-ध्यान नहीं देने योग्य है, तथापि 'तुष्यति दुर्जनः' इस न्याय को सामने रखकर, ऐसा कहनेवाले से हम पूछते हैं कि यदि टीकाकार शिथिलाचारी थे तो उन्होंने तीन वार उबाल आया हुआ जल पीने के लिए क्यों कहा ? क्योंकि शिथिलाचारी तो इन्द्रियों की लालसाओं को तृप्त करनेवाले होते हैं और तीन वार उबाले हुए पानी में से तो उसका स्वाद बिलकुल चला जाता है / फिर उनकी लालसा उससे कैसे तृप्त हो सकती है। वर्तमान में शिथिलाचारी साधुओं को देखो। वे ठंडा पानी ही पीते हैं / गरम पानी नहीं पीते / उल्टे वे अपनी चतुराई कर गरम पानी को दूषित बताने का प्रयत्न करते हैं / अस्तु / हम इतना ही कहना चाहते हैं कि-भाइयो ! शीलांगाचार्य के समान महान पुरुषों के ऊपर दोष न लगाओ। अपने कर्मों के दोषों को समझो / पूर्व पापोदय के कारण तुम अभक्ष्य को भक्ष्य और अपेय को पेय समझने लगे हो। जो ऐसा मानते हैं वे क्या चारित्रवान कहे जा सकते हैं ? आचार्य तीर्थंकरों के समान समझे जाते हैं। जो आचार्य सम्यक् प्रकार से जैनमत के प्रचारक हुए हैं, उनके वचनों को माने विना दूसरी कोई गति नहीं है। क्योंकि सूत्र तो अल्प है और ज्ञेय पदार्थ अनन्त हैं / आज तक एक भी तीर्थकर के समय में सारी बाते सिद्धान्तों में नहीं गूंथी जा सकी हैं / संविग्न-अशठ गीतार्थ की प्रवृत्ति