________________ ( 252) श्रावकों के वचन युक्तियुक्त समझ चार श्लोक बना, उन्हें ले राजद्वार पर पहुँचे / नियमानुसार द्वारपालने आचार्य महाराज को अंदर जाने से रोका / आचार्य महाराजने एक श्लोक लिख कर द्वारपाल को दिया और कहा:-" यह श्लोक ले जा कर राजा विक्रमादित्य को देदे / " वह श्लोक यह था: दिक्षुर्भिक्षुरेकोऽस्ति वारितो द्वारि तिष्ठति / हस्तन्यस्तचतुः श्लोकः किंवाऽऽगच्छतु गच्छतु ? // भावार्थ-एक साधु आपसे भेट करने की इच्छा कर आप के द्वार पर खड़ा है / वह चार श्लोक भी आप को सुनाने के लिए लाया है / वह अंदर आवे या चला जाय ? इस श्लोक को पढ़ कर गुणज्ञ राजा विद्वत्ता से प्रसन्न हुआ और उसने यह श्लोक लिख कर द्वारपाल को दियाः दीयतां दशलक्षाणि शासनानि चतुर्दश। . हम्तन्यस्तचतुःश्लोको यद्वाऽऽगच्छतु गच्छतु / / भावार्थ- दश लाख सोनामहोरे और चौदह शासन उसको दो, तत्पश्चात् चार श्लोक लेकर आये हुए साधु को कहो कियदि उसकी इच्छा हो तो आवे और उसकी इच्छा हो तो चला जाय। . इस प्रकार का राजा विक्रमादित्य का औदार्य और वचन चातुर्य देख आचार्यपुंगव को बहुत प्रसन्नता हुई / वे द्वारपाल को