________________ ( 254) सर्वदा सर्वदोऽसीति मिथ्या संस्तूयसे बुधैः / नारयो लेभिरे पृष्ठं न चक्षुः परयोषितः // 2 // भावार्थ- हे राजा ! पंडित लोग तेरी स्तुति कर कहते हैं कि, तू सदैव सब को उन की इच्छानुकूल देता है सो मिथ्या है। क्योंकि रण में शत्रु तेरी पीठ चाहते हैं और परस्त्रियाँ तेरी दृष्टि चाहती हैं; मगर उनकी इच्छाओं को तो तू कभी पूर्ण नहीं करता है। इस श्लोक को सुनकर, राजा दक्षिण दिशा को छोड़ कर पश्चिम दिशा की ओर जा बैठा / सूरीश्वर पश्चिम दिशा की ओर जाकर यह श्लोक बोले: आहते तव निःस्वाने स्फुटितं रिपुंहृद्घटैः / गलिते तत्प्रियानेत्रे राजश्चित्रमिदं महत् // 3 // भावार्थ-हे राजा ! यह तो बड़े आश्चर्य की बात हुई कि, तेरी यात्रा के लिए बजे हुए बानों को सुनकर तेरे शत्रुओं के हृदयरूपी घड़े फूट गये जिससे शत्रुओं की स्त्रियों के नेत्रों में पानी भर गया / ___ इस श्लोक को सुनकर राजा पश्चिम दिशा छोड़कर पूर्व दिशा की ओर जा बैठा। सूरी महाराजने उस तरफ जाकर कहा: सरस्वती स्थिता वक्त्रे लक्ष्मीः करसरोरुहे / कीर्तिः किं कुपिता राजन् ! येन देशान्तरं गता // 4 //