________________ ( 256 ) शास्त्रों में मुनियों के आचार का बहुत विस्तार के साथ वर्णन किया गया है / मगर मैं तुम को संक्षेप में बताता हूँ: पद्भ्यां गलदुपानभ्यां संचरन्तेऽत्र ये दिवा। चारित्रिणस्त एव स्युर्न परे यानयायिनः // भावार्थ-जो महा पुरुष दिन में नंगे पैर, उपयोग रख कर, प्रयोजन होने पर गमनागमन-जाना आना-करते हैं, वे ही चारित्र पात्र होते हैं / वाहन पर चढ़ कर गमनागमन करनेवाले चारित्रवान नही हैं। और भी कहा है कि:केशोत्तारणमल्पमल्पमशनं नियंञ्जनं भोजनं निद्रावर्जनमहि मज्जनविधित्यागश्च भोगश्च न / पानं संस्कृतपाथसामविरतं येषां किलेत्थं क्रिया ___ तेषां कर्ममयामयः स्फुटमयं स्पष्टोऽपि संक्षीयते // ___भावार्थ-जो शास्त्रविधि के अनुसार केशलोच करते हैं; जो शाक रहित अल्प भोजन करते हैं; जो दिन में नहीं सोते हैं: जो स्नानविधि और भोग का त्याग करते हैं; और जो तीनवार उबला हुआ पानी पीते हैं / इस प्रकार की क्रिया करनेवाले अपने विद्यमान अष्टविध कर्म रोग को नष्ट कर देते हैं।" - इस तरह से अपना आचार सुनाया तो भी राज्य ग्रहण करने का आग्रह राजाने नहीं छोड़ा, तब आचार्य महाराजने