________________ ( 240 ) है। इसका अर्थ है रागद्वेष से दूर रहना / क्यों कि अकेले रहने में साधुओं को अनेक विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। ___ श्री दशवैकालिकसूत्र में अपवाद पद से अकेला विचरने की आज्ञा दी गई है / मगर उसके साथ ही ये शब्द भी कहे गये हैं;-" यदि कोई समान गुणवाला या अधिक गुणवाला अच्छा सहायक न मीले तो कामदेव की तमाम क्रियाओं से दूरतर रह, आरंभ संरंभादि पाप के कारणों का त्यागकर विहार करे।" इस की मूल गाथा यह है: णया लभेजा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा। इक्को वि पावाई विवजयंतो, विहरिजकामेसु असज्जमाणो // (श्री दशवैकालिक सूत्र, द्वितीय चूलिका ) उक्त प्रकार की स्थिति हो तो, योग्य साधु गुरु की आज्ञा ले कर, एकाकी विचरण करे / प्रत्येक के लिए एकाकी विचरने की प्रभु की आज्ञा नहीं है। ऐसा होने पर भी यदि कोई अपनी चतुराई दिखा कर एकाकी विचरण करने लगे तो उसको प्रमु की आज्ञा से बाहिर चलनेवाला समझना चाहिए। आज कल कई बहुल संसारी नीव समुदाय में न रहकर एकाकी विचरते हैं और बाह्य त्याग वृत्ति दिखा कर भद्रिक जीवों को अपने रागी बनाते हैं। इतना ही नहीं, वे समुदाय में रहनेवाले साधुओं को, उन पर असत्य दोष लगा कर, बदनाम करते हैं।