________________ (238 ) रूपी भस्म पड़ी हुई है, ऐसे श्मशान रूपी संसार में रमणीयतासुन्दरता क्या है ? ___ संसार में क्या सुंदरता है सो कुछ मालूम नहीं, तो भी आश्चर्य है कि, इस में बुद्धिमान और निर्बुद्धि दोनों प्रकार के मनुष्य फँसते हैं / इस का कारण मोह के सिवा और कुछ नहीं है। मोह ही मनुष्य को उल्टे मार्ग पर चलाता है। कहा. है कि: दाराः परिभवकारा बन्धुजनो बन्धनं विषं विषयाः / कोऽयं जनस्य मोहो ये रिपवस्तेषु सुहृदाशा // भावार्थ-स्त्रियां पराभव करनेवाली हैं, बन्धुजन बंधन हैं, और विषयभोग विष के समान है, तो भी कौन ऐसा है, जो इन शत्रुओंसे भी मित्रता की आशा कराता है ? यह मनुष्य का मोह है। - यह सत्य है कि मिथ्याज्ञान सीप के अंदर भी चाँदी का भ्रम पैदा करता है / इस लिए साधु को चाहिए कि वह गृहस्थ धर्म में लिप्त न हो कर अपने साधु धर्म को भली प्रकार पाले / और किसी भी पदार्थ के ऊपर मूर्छा न रक्खे / एकाकी रहना। अब विशेष रूप से उपदेश देते हुए सुत्रकार कहते हैं कि: