________________ ( 236 ) पैदा किये हुए की रक्षा करने में दुःख होता है / जिस के आने में दुःख है जिस के जाने में दुःख है, ऐसे दुःख के भाजन अर्थ को धिक्कार है। परिग्रह धर्म का भी नाश करनेवाला है। जैसे वक्रग्रह निस के सिर पर आता है उस को अनेक प्रकार की विपदाएँ भोगनी पड़ती हैं, इसी तरह ममत्व रूप क्रूर ग्रह भी दुःख देनेवाला है। इतना ही नहीं अपने सबसे प्रिय जनसे वैर करा देनेवाला भी यही परिग्रह है / लोभाभिभूत मनुष्य अपने माता, पिता, भाई, बहिन आदि के प्राण भी क्षणवार में ले लेता है / इस के अनेक उदाहरण मौजूद हैं / परिग्रह रूपी ग्रह परलोक में भी जीव को शांति नहीं लेने देता है। विशेष क्या कहें ? तत्ववेत्ता लोग आशा को बिष की बेल बताते हैं। मगर हम कहेंगे कि, यह विष की बेल से भी ज्यादा बुरी है / क्यों कि विष की वेल तो इसी भव में प्राण लेती है / मगर आशा इस भव और पर भव दोनों में दुःख देती है / लोभी लोग दुनिया के दास है / लोभी मनुष्य के लिए कोई भी अकृत्य नहीं है। इन सब बातों को जानते हुए भी कौन ऐसा विद्वान् मनुष्य होगा जो गृहस्थावस्था में रहेगा / और जान बूझ कर कोई भी जेलखाने में रहना पसंद नहीं करता है, और संसार संपूर्णतया जेलखाना है / कहा है कि: