________________ (234 ) जाने के लिए त्याग धर्म के सिवा दूसरा कोई मार्ग नहीं है / मगर आजकल की रीति तो उल्टी ही हो रही है। यहां हम साधुओं को भी सूचित करना चाहते हैं किहे मुनिवरो ! गुरुकुल में रहते हुए अपने आत्मश्रेय का प्रयत्न करो; और आत्मश्रेय के साथ ही श्री वीर प्रभु के शासन की उन्नति करने में आत्मभोग दो। ____ अब प्रभुने साधुओं को क्या उपदेद्य दिया है ? इस का विचार किया जायगा। - खास साधुओं को उपदेश / र मूर्छाका त्याग / धम्मस्स य पारए मुणी आरंभस्स य अंतए हिए। सोयंति य णं ममाइणो णो लब्भंति णियं परिग्गहं // 9 // इह लोग दुहावहं विऊ परलोगे य दुहं दुहावहं / विद्धंसणधम्ममेव तं इति विजंको गारमावसे // 10 // मावार्थ-जो श्रुतधर्म और चारित्रधर्म का पारगामी हो और जो आरंभ, समारंभ और संभो दा रहता हो वही