________________ ( 232 ) बाहिर निकले / क्योंकि उसमें उन दो के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था। राना, मंत्री और अन्यान्य लोग यह देख कर आश्च र्यान्वित हुए। वे मन ही मन सोचने लगे-"ये दोनों वास्तविक धर्मात्मा होने पर भी इस काले तंबू में क्यों बैठे हैं ? " फिर उन्हों ने श्रावकों से पूछा:-" तुमने क्या अधर्म किया है ? " वे दोनों भाई साश्रुनयन बोले: अवाप्य मानुषं जन्म लब्ध्वा जैनं च शासनम् / कृत्वा निवृत्ति मद्यस्य सम्यक् सापि न पालिता // भावार्थ-अति दुर्लभ मनुष्य जन्म को और जैनधर्म को प्राप्त करके हमने मद्यपान का-शराब पीने का-त्याग किया था। मगर खेद है कि, हम उसको भली प्रकार से न पाल सके। अनेन व्रतभङ्गेन मन्यमाना अधार्मिकम् / अधमाधममात्मानं कृष्णप्राप्तादमाश्रिताः // भावार्थ-इस व्रत का भंग किया, इससे हमने अपने आप को अधर्मी समझकर अधमाधम जान कर इस काले प्रासाद मेंतंबू में प्रवेश किया है। शास्त्रकारोंने, जिसने व्रत भंग किया हो उस मनुष्य के जीवन को व्यर्थ प्रायः बताया है / यथा:- .. वरं प्रवेष्टुं ज्वलितं हुताशनं, न चापि भग्नं चिरसञ्चितं व्रतं /