________________ (233 ) वरं हि मृत्युः सुविशुद्धचेतसो, न चापि शीलस्खलितस्य जीवनम् // भावार्थ-जलती हुई अग्नि में प्रवेश करना अच्छा है; परन्तु चिरसंचित-बहुत दिनों के पाले हुए-व्रत को भंग करना अच्छा नहीं है / विशुद्ध अन्तःकरण सहित मर जाना अच्छा है, मगर शीलभ्रष्ट हो कर जीवित रहना खराब है। . ऐसे शास्त्रीय वाक्यों के अनुसार हम अधर्मी हैं इसी लिए हम काले तंबू में बैठे हैं।" संसार में वास्तव में तो धर्मात्मा मुनिवर्ग ही है। दूसरे जो अपने आप को धर्मात्मा बताते हैं यह उनका ढौंग है। आजकल का जमाना महात्मा को अमहात्मा बताता है और अमहात्मा गृहस्थों को महात्मा की पदवी प्रदान करता है / अर्थात् गृहस्थों को महात्मा कह कर पुकारता है। कलिकाल का कैसा माहात्म्य है कि गृहस्थ आजकल धर्म के सर्वस्व बन ____ इस गाथा में दीपिकाकारने स्पष्ट लिखा है कि, गाथाओं में गिनाये हुए गुणों को धारण करनेवाले साधु ही धर्मोपदेश देने के अधिकारी हैं / गृहस्थी नहीं। यह बात युक्ति पूर्वक सब को माननी पड़ेगी कि, जो लोग त्यागी होंगे वे ही त्याग का वास्तविक स्वरूप बता सकेंगे अन्य नहीं / मोक्ष में