________________ ( 237 ) प्रिया स्नेहो यस्मिन्निगडसहशो यामिकभटो ___पमः स्वीयो वर्गो धनमभिनवबन्धनमिव / महामेध्यापूर्ण व्यसनबिलसंसर्गविषमम् , भयं कारागेहं तदिह न रतिः क्वापि विदुषाम् // भावार्थ-जहाँ स्त्रियों का स्नेह बेड़ी के समान है, कुटुंबी जन चौकीदार के समान हैं; धन धान्यादि बंधन रूप हैं, और विष्टा, मूत्रादिसे पूर्ण महान दुर्गंधवाला व्यसन रूपी खड्डा है। यहां-ऐसे संसार रूपी जेलखाने में रह कर क्या विद्वान पुरुषों को सुख मिल सकता है ? नहीं / इसी प्रकारसे ज्ञानी मनुष्योंने संसार को श्मशान रूप बताया है:महाक्रोधो गृध्रोऽनुपरतिशृगाली च चपला, स्मरोलको यत्र प्रकटकटुशम्दः प्रचरति / प्रदीप्तः शोकाऽग्निस्तत अपयशो भस्म परितः श्मशानं संसारस्तदतिरमणीयत्वमिह किम् // भावार्थ-जिस में महान क्रोध रूपी गीध पक्षी फिरता है; जिस में अशान्ति रूपी चंचल सियार रहता है; कामदेव रूपी उल्लू जिस में दुस्सह कड़वे शब्दों का उच्चारण करता है। जिस में शोक रूपी महान अग्नि जल रही है। और जिस में अपमान