________________ ( 229 ) बहवे पाणा पुढो सिया पत्तेयं समय उवेहिया / जे मोणपदं उवद्विते विरति तत्थ अकासि पंडिए // 8 // भावार्थ-जो बाह्य और अभ्यंतर परिग्रह रहित होता है। निसका हृदय स्वच्छ सरोवर के समान सदा निर्मल होता है, जो अनेक धर्मों के बीच में समाधि पूर्वक आहेत धर्म का प्रकाश करता है, जो सोजता है कि-" अपने कर्मानुसार प्रत्येक प्राणी भिन्न भिन्न स्थिति में है। वे सबही सुख को चाहते हैं व दुःख से द्वेष करते हैं, " और जिनेंद्र धर्म को स्वीकार कर नियम करता है कि, मैं न किसी जीव को मारूँगा, न किसी को मरवाऊँगा और न किसी मारनेवाले को भला समसँगा, वही पंडित होता है। () सच्चा धर्मात्मा कौन होता है? | सूत्रकारने साधु को महाहूद के समान निर्मल बताया है सो यथार्थ है / महाहूद में मच्छ, कच्छपादि अनेक जीव रहते हैं; परन्तु वह लेश मात्र भी मलिन नहीं होता और न वह क्षुब्ध ही होता है / इसी भाँति उपसर्गों और परिसहों से महामुनि लेश मात्र भी क्षुब्ध नहीं होते हैं / दुनिया में अनेक प्रकार के धर्म विद्यमान हैं, तो भी मुनि क्षमा आदि दश धर्मों का प्रकाश