________________ (27) से इस प्रकार की कोई चेष्टा करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से बहुत बुरे कर्मों का बंध होता है / सूत्रकार इसी बात को 'हृढ़ करने के लिए और कहते हैं: जे यावि अणायगे सिया जे विय पेसग पेसए सिया / जे मोणपयं उवहिए, णो लज्जे ममयं सया यरे // 3 // समअन्नयरम्मि संजमे संसुद्धे समणे परिवए। जे आवकहा समाहिए दविए कालमकासि पंडिए // 4 // भावार्थ-यदि स्वयं नायक अर्थात् नायकरहित चक्रवर्तीने और दासानुदास व्यक्तिने मुनिपद धारण किया हो, तो वे लज्जा को छोड़ शिष्ट व्यवहार का पालन करें। अर्थात् यदि रंक व्यक्तिने चक्रवर्ती से पहिले दीक्षा ली हो तो, चक्रवर्ती उसको नमस्कार करे / (3) सामायिक छेदोपस्थापनीय-आदि चारित्र के स्थान में रह, सम्यक प्रकार से शुद्ध भाववाला बन, द्रव्य और भाव परिग्रह से मुक्त हो, सुसमाहितादि विशेषण विशिष्ट बन, लज्जा, मद आदि का त्याग कर मुनि चारित्र धर्म की पालना करे / (4) - प्रथम की गाथा से जैन शासन की अपूर्व उदारता और निष्पक्षपातता दृष्टिगत होती है। वस्तुतः तीर्थकर महाराज के शासन में पक्षपात को जलांजुली दी गई है। जैन शासन जाति प्रधान नहीं, गुण प्रधान है। जो मनुष्य पवित्र जैन धर्म का