________________ ( 224 ). सम्मान करता है-जैन धर्मानुसार चरता है वह जैन जाति के अन्तर्भूत हो सकता है / धर्माधिकार सबका समान है / मनुस्मृति कहती है कि-" शूद्रों को धर्मोपदेश नहीं करना चाहिए।" ऐसी कपोलकल्पित बाते वीतराग के शासन में नहीं हैं। जन शासन में चाहे कोई चक्रवर्ती हो या रंक, दोनों का दर्जा एकसा है। और दोनोंमें से जो पहिले ज्ञान, दर्शन और चारित्र को स्वीकार करता है वही वंदनीय होता है। व्यवहार भी इसी के अनुसार होता है। इस में जाति, धन या वय की प्रधानता नहीं है। गुण की प्रधानता है / क्षत्रिय जाति सर्वोत्कृष्ट गिनी गई है / इस का कारण उन का आत्म-वीर्य है। यदि वह आत्म-वीर्य हीन हो, तो वह केवल नाम की बड़ी है / कई धर्मों में अमुक जाति के सन्यासी को-चाहे वह कसा ही महात्मा हो-धर्म सुनाने का या सुनाने का अधिकार नहीं है। वह केवल ॐकार का ही ध्यान कर सकता है / ऐसी अनेक बातें है। ब्राह्मणोंने समय पा कर अपनी एक हत्थी सत्ता प्राप्त कर ली थी, उस का अब हास होने लग रहा है। लोग तत्त्वज्ञान को समझने लग रहे ह। कई जिज्ञासु बने ह। बे पक्षपात का तिरस्कार करते है। वास्तव में देखा जाय तो पक्षपात अधोगति में डालनेवाला है। पक्षपात शब्द यदि पक्षियों के लिए लागू करेंगे तो इस का अर्थ होगा पक्ष-पंख, का पात-गिरना / पंख का गिरना पक्षी का ही नीचे गिरना है। क्योंकि पक्षी विना पखों के उड़ नहीं सकते