________________ (211) होता है, तबतक उनको आगे बढ़ने का विचार नहीं होता है। संसार में रहनेवाले जीव क्या संसार को ठीक समझते हैं ? कदापि नहीं / तो भी वे मोह महामल्ल के आधीन होते हैं। इसलिए वह जैसे वेष पहिनाता है, वैसे वे पहिनते हैं, जैसे वह नाच नचाता है, वैसे ही वे नाचते हैं; और जैसे वह बोलता है वैसे ही वे बोलते हैं। अर्थात् मोहाधीन मनुष्य के लिए कोई भी बात न करने योग्य-न आदरने योग्य नहीं होती है। वह तो सबको करने योग्य समझता है। इसीलिए सूत्रकारोंने 'पंडित' शब्द बीच में दिया है। - - - पंडित कौन होता है ? विचार मात्र ही से कोई काम नहीं होता / केवल विचार ही से मोह-मातंग भी निर्बल नहीं होता / वास्तविक तत्त्वों का ज्ञान होने पर मनुष्य मोह के मर्मों और उस की चेष्टाओं को समझने लगता है / तत्पश्चात् यदि वह, कल्याणाकांक्षी और वीर होता है तो, स्वसत्ता का उपयोग करता है और परसत्ता का त्याग करता है। ऐसा करने पर वह 'पंडित' कहलाता है / जो ऐसा नहीं करता है, वह पंडित नहीं कहलाता है। शास्त्रकार स्पष्ट कहते हैं कि: