________________ ( 209) श्रीवार भगवान का उपदेश केवल मोक्ष के लिए है। सूयगडांग सूत्र के दूसरे अध्ययन के प्रथम उद्देश की 21 वीं और 22 वीं गाया में जो उपदेश दिया गया है, वह आदरणीय और माननीय है। उसमें 'इक्ख' शब्द आया है। वह रहस्यपूर्ण है। उसका अर्थ ' देख ' यानि - विचारकर ' ऐसा होता है। संसार में जीव अपने कृतकर्मानुमार चौरासी लाख जीवयोनि में भ्रमण करते हैं / सारे दर्शनवाले 'कर्म' और उसके अनुसार फल को मानते हैं। न्याय दर्शन औरों से भिन्न मानता है। वह कहता है कि, कर्मानुसार फल ईश्वर देता है / और सब ही फल कर्मानुसार मानते हैं। वास्तविक बात भी ऐसी ही है। ईश्वर राग, द्वेष, मोह, माया, काम, क्रोध आदि दूषणों से रहित है। इसलिए वह दुनिया का व्यापार अपने सिर नहीं लेता है। ले भी नहीं सकता है / क्यों कि जिन कारणों से दुनिया का व्यापार अपने सिर लिया जाता है, उन कारणों का उसको अभाव होता है। और इस अटल सिद्धान्त को हरेक मानता है कि, कारण के विना कार्य नहीं होता है / कहा है कि: यादृशं क्रियते कर्म तादृशं भुज्यते फलम् / / यादृशमुष्यते बीनं तादृशं प्राप्यते फलम् // भावार्थ-जैसा कर्म किया जाता है वैसा ही फल मिलता है। जैसे कि-जैमा बीन बोया जाता है वैसा ही फल मिलता है। 14