________________ ( 220) देव भगवान के चरित्र को देखना चाहिए / अब दुसरे उद्देश का वर्णन किया जायगा। ==== === = 0 मदादि का त्याग। Sळच्छ प्रथम उद्देश में श्रीऋषभदेव भगवानने अपने पुत्रों को जो उपदेश दिया था, उसी को विशेष रूपसे पुष्ट करने के लिए और उपशम भाव की विशेष रूपसे वृद्धि करने के लिए सूत्रकार दुसरे उद्देश को प्रारंभ करते हुए फरमाते हैं: तय सं च जहाइ सेरयं इति संखाय मुणींण मज्जइ / गोयनतरेण माहणे असेयकरी अन्नेसि इंखणी // 1 // जे परिभवइ परं नणं संसारे परिवत्तइ महं। अदु इंखणिया उ पाविया इति संखाय मुणीण मजइ // 2 // भावार्थ-जैसे सर्प अपनी कांचली छोड़ कर उससे अलग हो जाता है वैसे ही मुनि भी कर्मों का त्याग कर देते हैं / कारण नहीं होनेसे कार्य भी नहीं होता है, ऐसा समझ कर मुनि, गोत्र, जाति, कुल और रूप आदि के मदसे उन्मत्त नहीं होते हैं / वे दूसरों की निंदा भी नहीं किया करते हैं। ( 1 ) जो जीव अन्यों का तिरस्कार करते हैं, वे संसार रूपी दन के