________________ ( 200 ) जइ विय कामेहिं लाविया जइ णं जाहिण बंधओ घरं / जह जीवित नावकंखए णो लभंति ण संठवित्तए // 18 // भावार्थ-जो साधु माता पितादि के करुणाजनक वचन सुन कर और उन का रुदन सुन कर भी उन की ओर ध्यान नहीं देता है, वही साधु अपने चारित्र से भ्रष्ट नहीं होता है और वही मुक्ति में भी जाता है / ____साधु के संबंधी उस को इन्द्रिय विषयों को तृप्त करने की लालच दिखा कर, उसे अपने वश में करना चाहें; न माने तो वे उस को बांध कर अपने घर ले जायँ और वहां उस को नाना मांति की पीड़ाएँ दें, तो भी वीर्यवान साधु अपने संयमसे भ्रष्ट न होवे / यानी वह असंयत बनना न चाहे / मृत्यु आती हो तो उस को स्वीकार कर ले; परन्तु स्वीकृत चारित्र को न छोडे / और इस तरह स्वजनों को अनुकूल उपसर्ग कर के निराश होना पडे / और भी कहा है कि: सेहति य णं ममाइणो माया पिया य सुया य भारिया / पोसाहिण पासओ तुम लोगपरंपि जहासि पोसणो // 19 // भावार्थ-जो नव दीक्षित हो या दीक्षा लेने को तत्पर हो उस को, उस के माता, पिता, पुत्र और स्त्री कहते हैं कि"तु हमारा है। हम दुःखियों की तरस खा; तू विचारशील है;