________________ (146 ) जाल में फंसता है। देवद्रव्य और गुरुद्रव्य को हजम कर जाने की शिक्षा दिलानेवाला भी लोम ही है / प्राणियों को अनीति मार्ग पर ले जानेवाला भी लोम ही है। यद्यपि मनुष्य समझता है कि मुझ को सब कुछ छोड़ कर चला जाना है तथापि द्रव्याधीन हो कर दरिद्रावस्था का उपभोग करता है / रातदिन द्रव्य के लिए दीन बनता है, नहीं करने का काय करता है और नहीं बोलने का होता ह वह बोलता है। इसी माँति संबंधियों के साथ उसका बहुत काल का जो संबंध होता है उसे भी वह लोम के वश में हो कर तोड़ देता है। लोभी मनुष्य असद् वस्तु का भी सद्भाव बताने लग जाता है। कहा है कि हासशोकद्वेषहर्षानसतोऽप्यात्मनि स्फुटम् / स्वामिनोऽने लोभवन्तो नाटयन्ति नटा इव // 1 // भावार्थ-हास्य, शोक, द्वेष और हर्ष का अभाव होने पर भी, लोभी मनुष्य-केवल लोम के कारण-अपने स्वामी के सामने नट की तरह नाचता है। लोभी मनुष्य का हृदय दुःखी होने पर भी धनवान के आगे उसको खुश करने के लिए- ऊपर से हँसता है। मालिक का कुछ नुकसान होने पर-वास्तविक दुःख न होने पर भीअपनी मुद्रा को शोक प्रदर्शिका बना लेता है। स्वामी के शत्रु