________________ ( 175) इसलिए हे भव्यो ! सन्तोष सरदार की संगति कर, मोह ममत्व को छोड़ दो। थोड़े समय के सुखाभास के लिए सागर के समान दुःख को किस लिए अपने सिर पर लेते हो ? - जिस कुटुंब के लिए तुम प्रयत्न कर रहे हो, वह कुटुंब तुम्हारे साथ चलनेवाला नहीं है / जो कुटुम्बी तुम्हारे साथ चलनेवाले हैं उन के लिए यदि थोडा सा भी प्रयत्न करोगे तो हमेशा के लिए तुम सुखी बनोगे। अपने किये हुए कर्म स्वयं जीव को भोगने पड़ते हैं। दूसरा कोई भोगने के लिए नहीं आता है / अर्थात् दुःख के समय कोई आकर खड़ा रहनेवाला नहीं है। कम की सत्ता सब जीवों पर है / स्वसत्ता का उपभोग किये विना कर्म कीसी को भी नहीं छोड़ते हैं। कर्म की प्रधानता के लिए निम्नलिखित गाथाएँ क्या कहती हैं ? कमका प्राधान्य. देवागंधवरक्खसा असुरा भूमिचरा सिरिसिवा / राया नरसेठिमाहणा ठाणा तेवि चयंति दुक्खिया // 1 // कामेहिं य संथवेहि य गिद्धा कम्मसहा कालेण जंतवो / ताले जह बंधणच्चुए एवंउख्कयम्मि तुट्टति // 6 // भावार्थ-ज्योतिष्क, वैमानिक, गंधर्व, राक्षस, व्यंतरादि