________________ (177) के शरीर में, उस के प्रत्येक रोम-रंध्र में तपाकर सूइयाँ घुसा दो / उन सूइयों के चुभने से उस को जीतनीवे दना होगी उससे भी ज्यादा वेदना जन्म के समय जीव को होती है / इसी लिए तो शास्त्रकार जन्म दुःख को, जरा दुःख को और मरण दुःख को बहुत बताते हैं / इन में भी मरण का दुःख सब से ज्यादा है। एक मनुष्य, जिसको रोगसे अत्यन्त पीड़ा होती हो; उठने बैठने की तो क्या मगर करवट बदलने में भी जो अशक्त हो; रातदिन शरीर में चीसें चलती हों; ऐसा मनुष्य भी जब मरण समय आता है तब बडा दुःखी होता है / मरण पीडा से कापते हुए उस के शरीर को देखकर हरेक यह अनुभव कर सकता है कि यह बहुत ही दुःखी हो रहा है। उस को देखने वाले के मन में अपने भावी का विचार कर के एकवार वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। इस तरह के अनेक दुःख, देव-दानवादिने भी-जिनका गाथा में उल्लेख हो चुका हो-सहे हैं तब अपने समान पामर जीवों की तो बात ही क्या है ? यह सारी लीला है किसकी ? केवल कर्म की। आश्चर्य तो इस बात का है कि, इन सब बातों को समझते हुए भी जीव मोह रूपी मदिरा का पान कर उल्टे मार्ग पर चल रहे है / जीव गाथा में कहे अनुसार, मातापिता और सास ससुर के मोह में