________________ ( 190 ) कहेगा. मैं स्नान कर के भोजन की तैयारी करता हूँ। मगर कोई यह नहीं कहेगा कि-मैं अमुक आत्मिक क्रिया कर रहा हूँ; या दुसरे की भलाई के अमुक कार्य में लगा हूँ / इसी लिए शरीर को, धर्माचार्योने, पाप का कारण बताया है / कोई मनुष्य एकवार किसीसे ठगा जाता है; तो फिर दुबारा कभी उसका विश्वास नहीं करता है। फिर कई भवोंसे इस शरीर के द्वारा ठगे मा कर भी जो आत्माएँ उस पर ममत्व रखती हैं; उस पर विश्वास करती हैं और उससे अपने हित का काम नहीं करवाती हैं। वे कैमी भोली-अज्ञान आत्माएँ हैं, पाठक इसका विचार करें। __ यह शरीर थोड़ासा भी विश्वास करने योग्य नहीं है। क्यों कि कोई यह नहीं बता सकता कि न मालूम किस समय और कैसी स्थिति में यह शरीर रूपी दुर्जन, आत्मा रूपी सज्जन को छोड़ कर चला जायगा। इसी लिए मुनिजन शरीर रूपी दुर्जन को तपस्या द्वारा दुर्बल बना देते हैं। कल्याण की इच्छा रखनेवाले हरेक आदमी को शरीर के साथ व्यवहार करना चाहिए। तपस्या करनेवाले को एक बात खास तरहसे ध्यान में रखनी चाहिए कि-तपस्या का फल क्षमा है / अतः तपस्या शान्तिपूर्वक दृढता के साथ करना चाहिए / कैसे ही क्रोध के कारण मिलने और कैसे ही दुःख गिरने पर भी तपस्या करनेवाले को