________________ ( 191 ) शान्तिरस में ही मत्त रहना चाहिए। प्रायः देखा जाता है कितपस्वियों के हृदय में पारणे के समय बहुत अशान्ति हो जाती है। आहार में थोड़ीसी देर हो जानेपर ही उनके आत्मप्रदेश संतप्त हो उठते हैं। मगर ऐसा न होना चाहिए / नंदन ऋषि का उदाहरण इसके लिए खास तरह से ध्यान में रखने योग्य है / नंदन ऋषि का वृत्तान्त / ....... .... .. ........ नंदन ऋषि गृहस्थ अवस्था में बहुत ही दुखी थे / मगर उनका पुरा वृत्तान्त न लिखा जाकर केवल उपयोगी वृत्तान्त ही यहाँ लिखा जायगा / कहा है कि: "दु:खगर्भ हि वैराग्यं योगबुद्धिप्रवर्द्धकम् / " दुःख के गर्भ ही से-दुःख ही से-वैराग्य उत्पन्न होता है और योग में बुद्धि प्रवर्तती है। यह वाक्य सर्वथा ठीक है / इन मुनि का चरित उसका ज्वलंत उदाहरण है। नंदन ऋषिने जबसे दीक्षा ली थी तबही से उन्होंने साधुसेवा की प्रतिज्ञा ली थी और एक एक महीने के उपवास के बाद वे पारणा किया करते थे। उन्होंने कुल मिलाकर 1180495 मासक्षमण किये थे / अपने पारणे के दिन भी