________________ ( 194) शान्ति से सुनना और पारणा न कर के चुपचाप सेवा के लिए चल खड़े होना कितना उत्कृष्ट त्याग है ! कितना अचल प्रतिज्ञापालन है ! कितना स्थिर शान्ति पर अधिकार है ! ऋषि आहार पानी झोली में रख, झोली को खूटी पर टॉक, कृत्रिम मुनि के साथ चल दिये / वे जहाँ पीडित मुनि थे वहाँ पहुँचे / पीडित मुनिने दस बीस पुरी भली बातें सुनाई / मगर ऋषि को थोड़ासा भी क्रोध नहीं आया; शान्त-सुधासागर शान्त ही रहा; उल्टे वे यह सोचने लगे कि मैं इस साधु को किस तरह से शान्ति दूँ ? ऋषि उसी समय पीडित मुनिके लिए आहार और औषध लेने के लिए नगर में गये। मगर वह दूसरा देव प्रत्येक घर में जा जा कर आहार को अशुद्ध बना देने लगा / शुद्ध आहार के लिए, एक मास के उपवासी ऋषि बराबर एक प्रहर तक गाँव में फिरते रहे, तब कही जा कर उनको शुद्ध आहार मिला / वे आहार ले कर पीडित मुनि के पास आये / बनावटी मुनि क्रोध करके बोला:-" आहार लाने में इतनी देर क्यों की ?" . ऋषिने उत्तर दिया:-" शुद्ध आहार लाने में देर हो गई।" तब उस कृत्रिम मुनिने-देवने-कहा:-" वाहरे दुराचारी ! कपटी ! अपने लिए तो मनमाना आहार ले आना और दूसरों