________________ भी लोग भाग्यशाली ही बताते हैं। कई बचपन ही में मर जाते हैं। कई अपने आयुष्य रूपी चंदन को विषय रूपी अग्नि से भस्मसात कर डालते हैं / उचित तो यह है कि आयुष्य रूपी चंदन को धर्मध्यान में उपयोग करना चाहिए / तुच्छ सांसारिक सुखों के लिए जो कष्ट सहा जाता है वही कष्ट यदि ज्ञान, दर्शन और चारित्र की अभिवृद्धि के लिए सहे जाय, परिसह और उपसर्ग यदि आत्मकल्याण के लिए सहे जायें तो अत्यंत उपकार हो सकता है। भगवान कहते हैं: णवि ता अहमेव लुप्पए लुप्पंति कोअसिं पाणिणो / एवं सहिएहिं पासए अणिहेसे पुढे अहियासए // 11 // भावार्थ:-परिसहों और उपसर्गों से केवल मैं ही दुःखी नहीं हूँ; और भी अनेक जीव इस असार संसार में पड़, परवश हो, कष्ट उठाते हैं। इस प्रकार का विचार कर मनुष्य को अपने ऊपर आये हुए कष्टों को सहना चाहिए, क्लेश भावों को जरासा भी हृदय में स्थान नहीं देना चाहिए। ___जो जीव कर्माधीन हैं उन्हें प्रतिक्षण दुःख होता है। मगर कई रातदिन होनेवाले दुःख ऐसे हैं कि जिन को जीव दुःख ही नहीं समझते हैं। कारण उनको सहते सहते वे उनके अभ्यासी बन जाते हैं। मनुष्य, देव, तिर्यंच और नरकगति के जीवों को अनेक कष्ट सहने पड़ते है। मगर उन कष्टों को वे अज्ञानता