________________ ( 176 ) असुर कुमारादि दश प्रकार के देव, भूचर सादि तिर्यंच और राजा चक्रवर्ती, शेठ, ब्राह्मण आदि सारे सामान्य प्रकृतिवाले मनुष्य अपना स्थान छोड कर चले जाते हैं। . विषयेच्छा से, मातापिता के स्नेह से और सासु ससरे के स्नेह से लुब्ध बने हुए जीवों को जब अपने कृतकर्म भोगने पडते हैं, तब वे व्याकुल होकर हा मात ! हा तात ! आदि शब्द पुकारने लगते हैं और अन्त में परलोकगामी होते हैं / जैसे ताल वृक्ष पर से टूटा हुआ फल भूमि पर गिरता है उसी तरह वे भी आयुष्य रूपी वृक्ष से गिरकर धराशायी होते हैंमर जाते हैं। प्राणियों को मरते समय बहुत दुःख होता है; क्योंकि उस समय उन्हें असुह्य वेदना सहन करनी पड़ती है। शास्त्रकारोंने मरण-वेदना, जन्म-वेदना से भी विशेष बताई है। जन्मते समय जीवों को बड़ा दुःख भुगतना पडता है / उन को, इसी प्रकार योनिद्वारा, खिचकर पीडा सहते हुए बाहिर आता है जैसे कि, चाँदि के या स्वर्ण के तार को जन्ती में खिच कर बाहिर निकलना पडता है। कईका तो इस वेदना के मारे उसी समय शरीर छूट जाता है। जन्म के समय कसी वेदना होती है इस को दिखाने के लिए एक उदाहरण दिया गया है कि केले के समान सुकोमल शरीर वाले एक युवक-जिसने कभी नहीं जाना है कि दुःख क्या है !