________________ ( 180 ) पुत्र का मरना, अयोध्या नगर को छोड़ना, बहु शत्रु पूर्ण देश में गुप्त रीति से विचरण करना और पेट के हेतु नीच के घर पानी भरना; यह सब क्या है ! कर्म की विचित्रता या कुछ और ? महा ! एक ही भव में एक ही व्यक्ति की इस माँति अवस्थाएँ! अहो ! कर्म की गति बडी ही विषम है ! जिसके घर में सवेरे शाम छतीस राग रागनियों का गायन होता था, नाना माँति का नृत्य होता था, हाथियों के मदझरने से जिस के घर के सामने कीचड़ हो जाता था; उसी घर का शुन्य हो जाना किस के हृदय को नहीं घबरा देता है; किस को वैराग्य उत्पन्न नहीं करा देता है ? ऐसी कर्म की कीहुई विचित्रताएँ लोग हजारों स्थानों में देखते हैं। मगर फिर भी वे यह कह कर सन्तोष पकड़ लेते हैं कि ' ईश्वर की ऐसी ही मरजी थी।' वे वास्तविक बात को जानने का प्रयत्न नहीं करते हैं। कर्म जो करता है वह दूसरा कोई नहीं कर सकता है। कर्म राजा भूमंडल में जीवों को, इच्छानुसार नवीन नवीन सांग बनवाकर, नाच नचाता है। कर्म एफ प्रकार के नाटक का सूत्रधार है / दुनिया रंगमंडप है और जीव एक 2 पात्र हैं। कर्म इन सबसे चौरासी लाख जीवयोनि रूपी नाटक का अभिनय कराता है / सबने इस सूत्रधार को माना है। जैन इस को कर्म के नाम से पहिचानते हैं। दूसरे इसको माया, प्रपंच, प्रारब्ध,