________________ ( 181) संचित, अदृश्य आदि नामों से पुकारते हैं। कर्म महावीर और रामचंद्र के समान समर्थ पुरुषों को भी भोगने पड़े हैं तब दुसरे सामान्य जीवों की तो बातही क्या है ! कर्म धर्म को अधर्म और अधर्म को धर्म समझा देता है। यानी वह वास्तविक वस्तुओं को भी मुला देता है। > > > > >< () सम्यग्ज्ञान की आवश्यकता / ) भगवान कहते हैं किः-- अह पास विवेगमुट्रिए अ वितिन्ने इह भासइ धुवं / णाहिसिं आरं कओ परं वेहासे कम्मेहिं किञ्चति // भावार्थ-परिग्रह त्याग सहित कई संसार को छोड़कर खड़े होते हैं; परन्तु वे मुक्ति के वास्तविक मार्ग-ज्ञान, दर्शन और चारित्र से अनभिज्ञ होते हैं, इसलिए कल्पित योग मार्ग को ही मुक्ति का कारण बताते हैं, और मनमें समझते हैं कि हम जो कुछ कर रहे हैं वही मोक्ष का मार्ग है। हे शिष्य ! इसी तरह तू भी यदि उनके मार्ग पर चलेगा तो, तू भी संसार और मोक्ष, यह लोक और परलोक और साधुभाव व गृहस्थ माव के ज्ञान से वंचित रहेगा यानी बीच में रहकर कर्म से पीडित होगा।