________________ (152) " जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोहो पवड्ढइ / दोमासाकणयकजं कोडीए वि न निवट्टियं // भरवार्थ-जैसा लाभ वैसे ही लोभ / लाम लोम को बढ़ाता है / मैं दो माशा सोने के लिए आया था मगर एक करोड माशा से भी मुझ को सन्तोष नहीं हुआ। इसलिए हे राजा ! लोम को छोड अब मैंने मुनि का वेष धारण किया है। अब मैं द्रव्य और भावसे साधु हूँ।" ... राजाने कहा:--" मैं एक करोड माशा सोना देने को तैयार हूँ।" ___ कपिलने उत्तर दिया:-" राजन् ! मैंने सब परिग्रह को छोड़ दिया है।" इस प्रकार कहकर कपिल मुनि वहाँसे चले गये / शुद्ध चारित्र पालने लगे। इससे उनको लोकालोक का प्रकाश करने वाला केवलज्ञान प्राप्त हुआ। एकवार मार्ग में उन को चोर मिले / उनको बडी ही उत्तमता के साथ उपदेश दिया। और बलभद्रादि चोरों को सन्मार्ग पर लगाया / उदाहरणार्थ उन के उपदेश में भी एक गाथा यहाँ उद्धृत की जाती है। अधुवे असासयंमी संसारंमि दुक्खपउराए। किं नाम हुन्ज तं कम्मयं जेणाहं दुग्गइ न गच्छेज्जा !