________________ ( 170) पिटकादि ग्रंथोंद्वारा व्यक्त हुआ है / मगर श्री महावीर स्वामीने तो कभी किसी के प्रति रागद्वेष की परिणति नहीं बताई है / उन्हीं महावीर प्रमु के उपदेश की वानगी आज पाठकों को दिखाई जाती है। इस उपदेश में साधुओं को, अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्ग व परिसह समभावपूर्वक सहन करने के लिए और केवलज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रय की निर्मलता करने के लिए कहा गया है / वर्तमान समय में पैंतालीस आगम विद्यमान हैं / उन में महावीर भगवान का उपदेश ही संकलित है / उन्हीं आगमों में से यहां सूयगडांग सूत्र के दूसरे अध्ययन के प्रथम उद्देश का विवेचन किया जायगा / प्रथम प्रकरण में क्रोध, मान, माया और लोभसे होनेवाली हानियों और उन के त्यागसे होनेवाले लाभों का विवेचन किया गया है। अब दूसरे प्रकरण में वैराग्यजनक उपदेश का-जो संयम और कर्मक्षय का कारण है-और अनुकूल व प्रतिकूल उपसर्गों का प्रतिपादन किया जायगा। यह प्रतिपादन वैतालिक अध्ययन का सारांश होगा।