________________ . ( 153 ) भावार्थ-इस अस्थिर अशाश्वत और दुःख पूर्ण संसार में ऐसा कौनसा कर्म है कि निस के करने से मैं दुर्गति में न जाऊँ ? ये वाक्य केवली कपिचने चोरों को सन्मार्ग पर लाने के लिए कहा है / अन्यथा वे स्वयं तो कृतकृत्य हो चुके थे।" केवली कपिल के उदाहरण से मनुष्य को यह शिक्षा प्रहण करनी चाहिए कि लोम का त्याग करना ही अच्छा है। फपिलने लोभ छोड़ा तब ही वे केवली बनकर अजरामर पद को प्राप्त कर सके / यदि वे ऐसा न करते तो न जाने उन की क्या दशा होती ? जो मनुष्य लोम के आधीन होता है, वह किसी का भी मला नहीं कर सकता है / दूसरे का हित तो दूर रहा वह स्वयं अपना हित भी नहीं कर सकता है / विपत्तियों का पहाड़ सिर पर टूट पड़ने पर भी लोम के वश हो कर वह द्रव्यव्यय द्वारा उस को नहीं हटा सकता है। लोम प्रकृति दुनिया में अनेक प्रकार की विडम्बनाएँ उत्पन्न करती है / इस के कारण जाति बिरादरी में, सज्जन समाज में और अन्यान्य लौकिक कार्यों में वह अमान और अपयश का ही भाजन होता है / लोभी से धर्म साधन भी नहीं होता है। लोम रूपी अग्नि संतोष रूपी अमृत के विना शान्त नहीं हो सकती है। कहा है कि: