________________ ( 163) रहा था / सीधी तरहसे लइ मिलता न देख वह साधुसे झगड़ने लगा। मुनिने सोचा-" यह आहार मेरे लिए अयोग्य है, वापिस उसको देना भी उचित नहीं है / इसलिए इसका कुछ और प्रयत्न करना चातिए।" तत्पश्चात् उन्होंने मम्मण के देखते हुए उस लडू को राख में मल डाला, इससे मम्मण निराश होकर चला गया। मुनि वन में जाकर धर्म ध्यान में लगे / मम्पण का जीव मरकर, मम्मण सेठ बना। लड़ के दान से उस को बहुतसा धन मिला; परन्तु उपने साधु को खाने का अन्तराय किया था इसलिए वह धन को खा पी न सका, उसने अपना सारा जीवन तेल और चवले खाकर बिताया।": ___ हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि, कई प्राणियों को घृत, आम का रस, दूध, दही आदि मिलते हैं तो भी वे उन्हें खा नहीं सकते हैं। इसका कारण हमें तो यही जान पड़ता है कि उन जीवोंने पूर्व भव में किन्हीं को उन पदार्थों का अन्तराय दिया था। लोम के लिए और भी कई दृष्टान्त दिये जा सकते हैं। धवल सेठने लोम के वश, पाप की कुछ परवाह नकर श्रीपाल को मारने के अनेक प्रयत्न किये / अन्त में उसकाधवलका ही विनाश हो गया था।