________________ भादि सब मायामिश्रित होकर उनके दुर्गतिका कारण होजाते हैं / लोकपूना और कीर्ति लोभ रूपी धूमकेतुसे नष्ट होनाते हैं। लोभ लाखों गुणों का नाशक है; लोभ आत्मधर्म का पक्का शत्रु है; लोभ पाप का पोषक है; लोभ संयम गुणों का चुगने वाला है / अज्ञानादि मोरों को आनंदित करने में लोम मेत्र के समान है। मिथ्यात्वरूपी उल्लू को सहायता देने में लोभ रात्रि के समान है / दंभ, ईर्ष्या, रति अरति, शोक संताप और अविवेकादि जल-जन्तुओं को आश्रयं देने में लोभ महासमुद्र के समान है / काम क्रोधादि चोरों को आश्रय देने में लोभ महान् पर्वत के समान है / दीनता रूपी हिरणों और क्रूरता रूपी सिंहों के रहने के लिए लोभ एक महान जंगल के समान है और चोरी आदि दुर्गुण रूपी महान् सों के लिए लोम विवर-बिल के समान है। ऐसे लोभ को जीतने के लिए, लोभ के कट्टर शत्रु, सदागम के सच्चे पुत्ररत्न सन्तोष को अपने पास रखना चाहिए। संतोष मनुष्य को, अपने पिता सदागम के पास ले जाता है। सदागम ऐसा मार्ग बताता है कि, जिससे संसार का स्वरूप उसके लिए प्रत्यक्ष होजाता है। अतः सन्तोष की संगति प्रत्येक के लिए अत्यन्त आवश्यकीय है। उपर हमने भगवान ऋषभदेव की देशना का अनुसरण कर,