________________ (156 ) लने से दुःखी होता है / भाग्य विना क्या कभी किसी को कुछ मिला है ? - इससे जब कुछ लाभ नहीं होता है तब सेवावृत्ति में लगता है / राजा महाराजाओं का सेवक बनता है और प्रसंग आने पर अपने प्राणों की आहुति देने को भी तत्पर हो जाता है। मालिक मिथ्या या अनुचित जो कुछ बोलता है उस को वह अपनी सारी बुद्धि की शक्ति लगाकर, सत्य या उचित प्रमाणित करने का प्रयत्न करता है। धर्मकर्म की उस समय वह कुछ भी परवाह नहीं करता है। ममर वहाँ भी धनाशा पूर्ण नहीं होती। ___तब कुटुंब परिवार को छोड़, बड़े बड़े वनों, पर्वतों और समुद्रों को लांघ विदेशों में जाता है / जिन देशों में प्राणों का डर हो वहाँ भी जाता है और बड़ी ही सावधानी से वहाँ व्यापार करने लगता है / मगर वहाँ भी उसे निराश होजाना पड़ता है, तो फिर वह मंत्र यंत्र की खोज में लगता है। किसी योगी या फकीर को देखकर सोचता है कि, ये सिद्ध * महात्मा है / इनसे मेरा कल्याण होगा। ये प्रसन्न होकर मुझ को कोई ऐसा मंत्र देंगे की जिससे मैं धनवान हो जाऊँगा और इसी विचारसे वह सच्चे दिलसे उसकी सेवा करने लगता है। किसी समय वह योगी लहर में आकर पूछता है कि:"क्यों भक्त कैसा है ? " उस समय धन-लोभसे विहुल बना