________________ ( 157 ) हुआ मनुष्य नम्रता और दिनता से उसके पैरों पर गिरकर कहता है कि-" महाराज कोई मार्ग दिखाइए।" ___ योगी बडी गंभीरता धारण कर कहता है:-" क्यों बच्चे क्या काम है ?" ____ तब वह लोभी अपने भरम का इस प्रकार भंडा फोड़ता है " महाराज, कृपा करके कोई ऐसा मंत्र या यंत्र बताइए कि जिससे आप का सेवक सुखी हो / दो चार बरस से मैं बराबर विपत्तियों का शिकार बन रहा हूँ।" तब महाराज पुस्तक खोल कर, या मुँह से कुछ बताते हैं / लोम वश बिचारा उसको सत्य समझ, धनाशा को पूर्ण करने के लिए, देवपूना, सामायिक, संध्या आदि सारी धर्म कृतियों को भूल कर अपना मन उसी में लगा देता है / उसी की साधना में अपना सारा समय व्यतीत करता है / मगर हतभाग्य, यह नहीं समझता है कि मंत्र, यंत्र आदि सब पुण्यवान के ही सफल होते हैं औरों के नहीं / भाग्यहीन-पुण्यहीन के लिए तो उल्टे ये हानिकारक हो जाते हैं। परिणाम यह होता है कि असफलता के कारण विचारे में जो कुछ बुद्धि होती है वह भी नष्ट हो जाती है, वह पागल हो जाता है, और उद्यम हीन होकर नितान्त दरिद्री बन बैठता है। अब हम यह देखेंगे कि विषय की आशा मनुष्य को कैसी