________________ २-जो लोग अपनी शक्ति को नहीं जानते हैं; जो अन्याय करते हैं और जो लोभ से अपना जीवन बिताते हैं; उन सब में मैं धुरंधर हूँ-बढा हुआ हूँ। ( अर्थात्-मैं अपनी शक्ति को नहीं जानता हूँ; अन्याय करता हूँ और लाभ के वश में अपना जीवन बिताता हूँ।) ३-जो यह नहीं जानते हैं कि, राज्य संमार रूपी वृक्षः का बीज है, वे अधम हैं; परन्तु मैं तो उनसे भी विशेष अधम हूँ; क्योंकि मैं यह जानते हुए भी राज्य का परित्याग नहीं करता हूँ। ( इस कथन का अभिप्राय यह है कि, वास्तविक , जानकार वही होता है जो किसी वस्तु को यदि अनिष्ट समझता है, तो उस को छोड़ देता है / मगर जो ऐसा नहीं करते हैं और केवल बातें बनाते हैं वे संसार को ठगनेवाले हैं। ) ४-तूही अपने पिता का वास्तविक पुत्र हैं, क्योंकि तूने उनके मार्ग का अनुसरण किया है। मैं भी उसी समय उन का वास्तविक पुत्र कहलाने योग्य होऊँगा; जब तेरे समान बन जाऊँगा / ततो बाहुबलिं नत्वा भरतः सपरिच्छदः / पुरीमयोध्यामगमत् स्वराज्यश्रीसहोदराम् // भावार्थ-तत्पश्चात् भरत बाहुबली को नमस्कार कर, सप-.. रिवार स्वर्ग की समानता करनेवाली अयोध्या नगरी में गये /