________________ ( 124 ) पारणे कर लो; मैं पीछे करूँगा।" मित्र पारणा करलेते थे / आप पारणा न करके तपस्या आगे बढ़ाते थे। इस प्रकार तप. श्वरणसे उन्होंने तीर्थकर नाम कर्म बाँधा परन्तु साथ ही माया के कारण उन्हें स्त्रीवेद का भी बंध हुआ।" ___ कर्म कभी किसीका लिहाज नहीं करता। इसलिए सत्पुरुषों को सदैव दंभसे-कपटसे-डरते रहना चाहिए। दंभ सत्र का नाश. करनेवाला है / कहा है कि दम्भो मुक्तिलतावह्निर्दम्भो राहुः क्रियाविधौ / दौर्भाग्य कारणं दम्भो दम्भोऽध्यात्मसुखार्गला // ___ भावार्थ-दम्भ मुक्ति रूपी बेल का नाश करने के लिए अग्नि के समान है। क्रिया रूपी चन्द्रमा का आच्छादन करने के लिए दम्भ राहु के समान है; और दुर्भाग्य का कारण व अध्यात्म सुख को रोकने में अर्गला के समान भी दंभ ही है / ___ जब तक दंभ रहता है तब मा धर्मकृति-जो मोक्षका कारण है-नहीं होती है। अनेक प्रकार की क्रियाएँ कीजायँ तो भी दम उनको सफल नहीं होने देता है। चंद्र स्वयं शीतल, निर्मल और रमणीय है तो भी जब राहु के फंदे में आता है तब मिट्टी की ठीकरी के समान निस्तेन बन जाता है / इसी भाँति धर्म रूपी चंद्रमा जब दंभकृति रूपी राहु की जाल में फँस जाता है तब उसका वास्तविक तेज तिरोहित हो जाता है।