________________ ( 196 ) दम्भ धर्म के अन्दर भी कैसा विघ्न डालनेवाला है ! कहा है किः अब्जे हिम तनौ रोगो वने वह्निर्दिने निशा / ग्रन्थे मौख्यं कलिः सौख्ये धर्मे दम्भ उपप्लवः // भावार्थ-जैसे कमल को बरफ, शरीर को रोग, बन को अग्नि, दिन को रात्रि, ग्रंथ को मूर्खता, और सुख को क्लेश नाश करने वाला है। इन में विघ्न डालने वाला है, उसी भाँति दंभ भी धर्म में विघ्न डालने वाला है-धर्म को नाश करने वाला है। दंभ सहित जो जप, तप, संयम आदि किये जाते हैं वे संसार के भ्रमण को कम नहीं कर सकते हैं। जबतक दंभ है तब तक ये सब निष्फल है / कहा है कि: दम्भेन व्रतमास्थाय यो वान्छति परं पदम् / लोहनावं समारुह्य सोऽब्धेः पारं यियासति // 1 // किं व्रतेन तपोभिर्वा दम्भश्चेन्न निराकृतः ? किमादर्शन किं दीपैर्यद्यान्ध्यं न शोर्गतम् ! // 2 // केशलोचधराशय्यामिक्षाब्रह्मव्रतादिकम् / दम्भेन दुष्यते सर्व त्रासेनैव महामणिः // 3 // . भावार्थ-जो मनुष्य कपटपूर्वक व्रत करके मोक्ष पाने की इच्छा रखता है, वह मानो लोहे की नाव में बैठकर समुद्र तैरना चाहता है। २-यदि दंम या नाश नहीं हुआ तो फिर व्रत