________________ ( 138) पत्तों के नीचे छिपा रखती हैं। इसी भाँति परिग्रह संज्ञा ही के कारण अज्ञात अवस्था में भी वृक्ष धन की ममता रखते हैं। इसी भाँति दो इन्द्री, तीन इन्द्री और चउ इन्द्री जीव भी परिग्रह की संज्ञावाले होते हैं। कहा है कि:__ अपि द्रविणलोभेन ते द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः / / स्वकीयान्यधितिष्ठन्ति प्राग्निधानानि मूर्च्छया // भावार्थ-दो इन्द्री, तीन इन्द्री और चार इन्द्री जीव द्रव्य के लोभ से पूर्व के निधान सेवन करते हैं / अर्थात् अपनी पूर्वा. वस्था में जिस जगह द्रव्य रक्खा हुआ होता है उसी जगह लोम-परिणामों के कारण दो इन्द्री आदि के रूप में जा कर उत्पन्न होते हैं। ___ अब यह विचार किया जायगा कि पंचेन्द्री जीव लोभ के वश कैसी 2 आपत्तियाँ सहते हैं। कहा है कि: मुनङ्गगृहगोधाः स्युर्मुख्याः पञ्चेन्द्रिया अपि / धनलोभेन जायन्ते निधांनस्थानमिषु // भावार्थ-सर्प, गृहगोधा, आदि के रूप में पंचेन्द्रिय जीव भी धन के लोभ से अपने निधान स्थान की भूमि में उत्पन्न होते हैं। ..लोमाधीन जीव मर कर भी अपने भंडार के आसपास पंचेन्द्रिय तिर्यंच के रूप में उत्पन्न होता है। इतना ही क्यों,