________________ (142) की उन्नति होती जाती है वैसे ही वैसे जीव उच्च उच्च तर गुणस्थान में चढ़ता जाता है। इनमें से पहिले चतुर्थ गुणस्थान की प्राप्ति ही बडी कठिन है। चतुर्थ गुणस्थानक की प्राप्ति के समय मनुष्य को वस्तु धर्म की वास्तविक पहिचान होती है। अर्थतः वह वास्तविक देव को देव मानता है, वास्तविक गुरु को गुरु मानता है और वास्तविक धर्म को धर्म समझने लगता है। समझ कर फिर तीनों की भक्ति में रत होता है। ___भक्ति करते हुए फिर उसके व्रत करने के भाव होते हैं। मोटे रूप से व्रत आदरता है / तब वह पंचम गुणस्थान वर्ती कहलाता है / इस गुणस्थान में श्रावकों के पूर्णतया व्रत पालन कर फिर वह साधु धर्म स्वीकार करता है / व्रतों को पूर्णतया पालना स्वीकार करता है / इससे वह छठे गुणस्थानवर्ती होता है / फिर जैसे जैसे उत्तरोत्तर आत्म सत्ता की शुद्धता होती जाती है वैसे ही वैसे वह आगे के गुणस्थानों में प्रवेश करता जाता है। जब वह दशवे गुणस्थान में पहुँचता है तब उसके क्रोध मान, माया और लोभ क्रमशः क्षय होते हैं या उपशान्त होते हैं / ग्यारहवें गुणस्थान में सूक्ष्म लोभ उपशान्त दशा में रहता है / वही लोम जीव को ग्यारहवें गुणस्थान से पतित करता है।