________________ ( 137 ) अहो ! लोभस्य साम्राज्यमेकच्छत्रं महीतले / तरवोऽपि निधि प्राप्य पादैः प्रच्छादयन्ति यत् // भावार्थ-अहो पृथ्वीतल पर लोभ का एक छत्र राज्य हो रहा है। ( औरों की क्या बात है मगर ) वृक्ष भी निधि पा कर उसको अपनी जडों से ढक देते हैं। ____एकेन्द्री वृक्ष भी द्रव्य के भंडार को अपनी जड़ों से ढक देते हैं ता कि-कोई उसको देख न सके / ___ श्री अरिहंत भगवानने बताया है कि, सारे प्राणियों के अन्दर चार प्रकार की संज्ञा है / (1) आहारसंज्ञा, (2) भयसंज्ञा, (3) मैथुनसंज्ञा, (4) परिग्रहसंज्ञा। ___आहारसंज्ञा के कारण वृक्ष अपनी जड़ों के द्वारा जल ग्रहण कर अपने डाल पात तक पहुंचाते हैं। भयसंज्ञा के कारण मनुष्य का हाथ अपनी ओर आते देख कर लजालु का पौदा अपने पत्ते संकुचित कर लेता है / कितने ही वृक्षों के अंदर मैथुनसंज्ञा का भी हम प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं / उनके अंदर नरनारी का विभाग होता है। इस लिए जब वे दोनों सम्मिलित होते हैं, वहीं वे फलते हैं अन्यथा नहीं / अशोक और बकुल के वृक्ष स्त्री का स्पर्श होने से या स्त्री के मुँह का पानी उन पर पडने से फलते हैं। और परिग्रह संज्ञा के कारण वृक्ष अपने फलों, फूलों और पत्तों की प्रकारान्तर से रक्षा करते हैं ! कई वेलें फलों को