________________ (128 ) और विद्याधर उन की सेवा करने को तत्पर होंगे / मगर वास्तविक क्रियावान उस को भी पीड़ा समझेंगे और उस की ओर से उदास होकर स्वसंवेद्य सुख में मग्न होंगे / जब उन की ऐसी स्थिति हो जायगी तब अपने स्वाभाविक वैरभाव को छोड़ कर उन के मुँह से निकलते हुए शब्द श्रवण करेंगे और अपने आप को कृत कृत्य मानेंगे / कहा है कि:सारङ्गी सिंहशावं स्पेशति सुतधिया, नन्दिनी व्याघ्रपोतं; मार्जारी हंसबालं, प्रणयपरिवशात् केकिकान्ता मुनङ्गम् / वैराण्याजन्मजातान्यपि गलितमदा जन्तवोऽन्ये त्यजेयु दृष्ट्वा सौम्यैकरूढं प्रशमितकलुषं योगिनं क्षीणमोहम् / / भावार्थ-जो समताधारी हैं; जिन के पाप शान्त हो गये हैं और जिनका मोह नष्ट हो गया है, ऐसे योगी को देखकर, प्राणी अपने जन्म के साथ जन्मे हुए वैर को भी छोड़ देते हैं। हरिणी अपने बच्चे की तरह सिंह के बच्चे को स्नेहसे स्पर्श करती है। गाय शेर के बच्चे को, बिल्ली हंस के शिशु को और मयूरीमोरनी-सर्प के बच्चे को अपने बच्चों की भाँति स्पर्श करती हैं। यह सब योग का प्रभाव है। आजकल बहुतसे त्यागी गिने जानेवाले महात्मा जहाँ विचरते हैं वहाँ; या जहाँ जन्मते हैं वहाँ नया भेद उत्पन्न